Lump Sum & SIP: आपके लिए क्या सही है, और कब?

निवेशक अपने फंड को दो तरह से बाजार में लगा सकते हैं। यह एकमुश्त (Lump Sum) या सिप (SIP) दोनों में से कुछ भी हो सकता है। अलग-अलग परिस्थितियों में दोनों ही कारगर साबित हो सकती हैं। इस आर्टिकल में हम आपको यह समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर इन दोनों का नफा-नुकसान क्या है व आपके लिए दोनों में से कौन सी ज्यादा कारगर है।
Lump Sum & SIP: आपके लिए क्या सही है, और कब?
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नए निवेशकों के लिए निवेश एक मुश्किल काम हो सकता है। रिस्क मैनेजमेंट इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपके निवेश की ग्रोथ की संभावनाएं काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती हैं कि आप अपना पैसा किस तरह से लगा रहे हैं।

निवेश दो तरह से किया जा सकता है:

एक ही बार में एक बड़ा अमाउंट निवेश करना, जिसे आमतौर पर एकमुश्त (Lump Sum) कहा जाता है। या,

थोड़ी-थोड़ी अमाउंट को समय-समय पर निवेश करना जैसे हर हफ्ते, महीने या तिमाही पर। यह सिप (SIP) की शैली होती है।

आइए अब दोनों की ही विशेषताओं और खामियों को जानने की कोशिश करते हैं:

1) एकमुश्त निवेश (Lump Sum Investment) क्या है?

एकमुश्त (Lump Sum) निवेश का अर्थ है कि निवेशक अपनी पूंजी एक ही बार में निवेश करता है और आवश्यकता पड़ने पर ही दोबारा पूंजी लगाता है यानी टॉप अप करता है।

एकमुश्त निवेश के क्या लाभ हैं?

यह विधि आम तौर पर अनुभवी या मोटी रकम रखने वाले निवेशकों के लिए सही होती है। इस विधि में अपनी जोखिम की क्षमता को बढ़ाना भी जरूरी है।

एकमुश्त निवेश करने वाले निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव के रुख को अपने अनुसार मोड़ सकते हैं। यह शैली आम तौर पर उन व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक है, जिनके पास निवेश के लिए एक बड़ी राशि है।

एकमुश्त निवेश पर लाभ कमाने की संभावना तब अधिक होती है जब बाजार अस्थिर दौर से गुजरा हो और एक बार फिर ऊपर चढ़ने की तैयारी कर रहा हो।

यह वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भी उपयुक्त है। इसके साथ ही यह लॉन्ग टर्म में बेहतरीन वेल्थ क्रिएशन का भी एक अच्छा तरीका है।

एकमुश्त निवेश के क्या नुकसान हैं?

जब आप एकमुश्त तरीके से निवेश करते हैं, तो बाजार की टाइमिंग इसके लिए बहुत जरूरी हो जाती है। यदि निवेश तब किया जाता है, जब बाजार पहले से ही ऊपर पहुंचा हुआ है, तो रिस्क-रिवार्ड अनुपात (risk-reward ratio) कम हो जाता है। वहीं बाजार में गिरावट से शॉर्ट टर्म में ‘पोर्टफोलियो डिवैल्यूएशन’ भी हो सकता है। इसका मतलब यह है कि उच्च स्तर पर खरीदे जाने पर निवेशक के पास बहुत कम स्टॉक यूनिट रह जाती हैं।

अगर फंड केवल छोटी अवधि के लिए निवेश किया जा रहा है, तब भी यह तरीका कारगर नहीं है। इससे आपमें निवेश को लेकर कोई अनुशासन भी कायम नहीं होता। चूंकि निवेशक में इससे बचत की आदत पैदा नहीं होती और वह पैसा जमा करने के लिए अपने खर्चों में कहीं भी कोई कटौती नहीं करता है।

2) सिप निवेश (SIP Investing) क्या है?

सिप या SIP कम बजट वाले उन निवेशकों के लिए एक बेहतरीन जरिया है, जो नियमित अंतराल पर कम मात्रा में निवेश करना चाहते हैं। निवेश साप्ताहिक, मासिक या वार्षिक आधार पर किया जा सकता है और धीरे-धीरे एक अच्छा अमाउंट बन जाता है।

सिप (SIP) के क्या लाभ हैं?

SIP नए निवेशकों के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती है क्योंकि वे इससे छोटी अमाउंट के साथ निवेश की दुनिया से जुड़ सकते हैं। यह नौकरी-पेशा लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकती है क्योंकि इससे उनमें लंबे समय तक नियमित बचत की आदत भी विकसित होती है।

कुल मिलाकर SIP रुपया-लागत औसत (rupee-cost average) के माध्यम से लंबी अवधि में बाजार के उतार-चढ़ाव को सामान्य कर देती है। मतलब जब बाजार में तेजी होती है, तो कम यूनिट खरीदी जाती है। इसी तरह मंदी के दौरान कम कीमत पर अधिक यूनिट खरीदे जा सकते हैं। इससे एक वक्त के बाद प्रति यूनिट की कीमत औसतन सामान्य हो जाती है।

सिप (SIP) में एकमुश्त के बजाए ज्यादा लचीलापन होता है क्योंकि निवेशक अपनी गति और सुविधा के अनुसार इसमें निवेश कर सकता है। निवेशक अपने मौजूदा वित्तीय संसाधनों और अन्य दायित्वों पर विचार करने के बाद निवेश की योजना बना सकता है।

सिप (SIP) के नुकसान क्या हैें?

SIP के कारण निवेशक कई बाजार में उपलब्ध अच्छे अवसरों से चूक जाते हैं, जिसके लिए एग्रेसिव इंवेस्टमेंट एप्रोच की जरूरत पड़ती है।

निवेश अक्सर एक पूर्व निर्धारित तारीख पर किया जाता है। इसलिए बाजार के उतार-चढ़ाव के दौरान निवेश कर पाना मुश्किल होता है। ऐसे में इन अस्थिर परिस्थितियों का फायदा निवेशक नहीं उठा पाता है।

SIP उन निवेशकों के लिए भी सही जरिया नहीं हो सकता जिनकी नियमित आय नहीं है। कई बार समय के साथ निवेशक का मन बदल जाता है और वह SIP में निवेश करना छोड़ देता है। दूसरी दिक्कत यह है कि कई बार निवेशक इसमें ज्यादा पैसे नहीं डालते यानी आपकी SIP बहुत ही छोटी SIP होती है। ऐसे में जाहिर है मनचाहे रिटर्न का आना संभव नहीं हो पाता।

आपके लिए इन दोनों में से कौन सा सबसे अच्छा है?

शेयर बाजार बहुत तेजी से बदलता रहता है। यहां स्मार्ट निवेशक वह ही है जो बाजार के अनुसार अपनी चाल बदल सके और हर परिस्थिति का लाभ उठा सके।

आइए कुछ उदाहरणों से यह जानने की कोशिश करते हैं कि निवेशक एकमुश्त या सिप (SIP) की कौन सी तकनीक का उपयोग करके लाभ कमा सकता है।

उदाहरण 1:

मिस्टर X 10 रुपए की यूनिट लागत पर एक फंड में 2,00,000 रुपए की एकमुश्त निवेश करते हैं। अब अगर बाजार में तेजी है और फंड का मूल्य बढ़ना शुरू हो जाता है, तो मिस्टर X को अपने एकमुश्त निवेश से फायदा होगा।

SIP से यहां कोई खास फायदा नहीं पहुंचने वाला है। चूंकि मिस्टर X ज्यादा यूनिट खरीद कर यूनिट को समाप्त कर लेंगे क्योंकि उनका मूल्य एक अपट्रेंडिंग मार्केट में बढ़ रहा है। वहीं SIP में स्थिति में रिटर्न की दर कम हो जाएगी।

उदाहरण 2:

उदाहरण 1 में हमने देखा कि कैसे एकमुश्त निवेश अनुकूल परिस्थितियों में निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न देता है। हालांकि बाजार एक ऐसी जगह है बदलता रहता है। SIP इन उतार-चढ़ाव को जोखिमों को कम करके फायदा पहुंचाता है।

मान लें कि एकमुश्त के बजाय मिस्टर X ने SIP के माध्यम से अपने 2,00,000 रुपए का निवेश करने की सोची। उसने 10,000 रुपए की SIP की और पहले महीने में 10 रुपए में 1,000 यूनिट खरीद ली। अगर बाजार नीचे जाता है, तो अगले महीने वही यूनिट 10 रुपए का दाम कम हो जाएगा। मान लीजिए कि यूनिट का मूल्य 8 रुपए हो गया है। यहां मिस्टर X अगले महीने 10,000 रुपए में 1,250 यूनिट खरीद सकेंगे। यानी बाजार के उतार-चढ़ाव का फायदा आप यहां भरपूर उठा सकते हैं।

सौ बात की एक बात

दोनों तरीकों के नफे-नुकसान को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बढ़ते बाजार में एकमुश्त सबसे अच्छा काम करता है। वहीं गिरते बाजार में निवेशकों के लिए SIP बेहतरीन साबित हो सकती है। रिस्क मैनेजमेंट की दृष्टि से देखें तो इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव को झेलने की ज्यादा क्षमता होती है। बाजार में गिरावट से निवेशकों को लागत में औसत गिरावट से लाभ होता है।

इन दोनों में एक बात सामान्य है वह है कि आपको लंबे समय तक इनसे जुड़े रहना पड़ेगा। सबसे जरूरी बात यह है कि निवेशक को बचत और निवेशक की आदत को लंबे समय तक बनाए रखना चाहिए ताकि वह वेल्थ क्रिएशन की यात्रा का आनंद उठा सके।

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