भारतीय शेयर मार्केट के इतिहास में 2025 को एक ऐसे साल के रूप में याद किया जा सकता है, जब विदेशी निवेशकों का भरोसा सबसे ज्यादा डगमगाया है। क्योंकि फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FII) ने इस साल भारतीय इक्विटी मार्केट से ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक की नेट बिकवाली की है। हालांकि DIIs रिकॉर्ड खरीदारी कर रहे हैं। यह विरोधाभास निवेशकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है आखिर मार्केट में हो क्या रहा है?
इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि 2025 विदेशी निवेश के लिए ‘सबसे खराब साल’ क्यों बन गया है और इसके पीछे के आर्थिक समीकरण क्या हैं।
क्या है मामला?
अक्टूबर 2024 से ही फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FIIs) ने भारतीय स्टॉक्स में बिकवाली शुरू कर दी थी, जो अगले महीनों में और तेज़ होती गई, बीच-बीच में केवल थोड़े समय के लिए खरीद देखने को मिली। इसी वजह से 2025 भारतीय इक्विटी मार्केट में विदेशी निवेश के लिए अब तक का सबसे खराब साल बन गया है।
NSDL के आंकड़ों के अनुसार, FIIs ने 2025 में अब तक रिकॉर्ड ₹1,59,779 करोड़ के शेयर बेच दिए हैं। साल के 12 में से 8 महीनों में FIIs नेट सेलर रहे, जिसमें जनवरी सबसे खराब महीना रहा, जब ₹78,027 करोड़ की बिकवाली हुई, जबकि मई सबसे बेहतर महीना रहा, जब ₹19,860 करोड़ की खरीद दर्ज की गई।
इसके विपरीत, डोमेस्टिक निवेशकों की भूमिका बेहद मजबूत रही है। NSDL के डेटा के मुताबिक, दिसंबर के पहले 9 ट्रेडिंग दिनों में FPIs ने ₹17,955 करोड़ की निकासी की, जबकि इसी अवधि में म्यूचुअल फंड्स समेत DIIs ने ₹36,101 करोड़ के शेयर खरीदे। इसके साथ ही 2025 में DIIs का कुल निवेश बढ़कर रिकॉर्ड ₹7.44 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, जो भारतीय मार्केट में डोमेस्टिक निवेशकों की बढ़ती ताकत और भरोसे को साफ दिखाता है।
भारतीय मार्केट में विदेशी हिस्सेदारी 15 साल के निचले स्तर पर
लगातार FII बिकवाली के चलते भारतीय शेयर मार्केट में विदेशी निवेशकों की मौजूदगी तेज़ी से घटी है। NSE रिपोर्ट के अनुसार, Q2 में NSE-लिस्टेड कंपनियों में FPI ओनरशिप 16.9% पर आ गई, जो 15 साल से अधिक का निचला स्तर है। सिर्फ इतना ही नहीं, NIFTY50 में विदेशी हिस्सेदारी 24.1% और NIFTY500 में 18% तक फिसल गई, जो दोनों ही 13+ साल के निचले स्तर हैं।
सेक्टरल स्तर पर, विदेशी निवेशक फाइनेंशियल्स में ओवरवेट बने रहे, कम्युनिकेशन सर्विसेज पर रुख थोड़ा पॉजिटिव किया, जबकि कंज्यूमर स्टेपल्स, एनर्जी, मटीरियल्स और इंडस्ट्रियल्स पर सतर्कता जारी रही।
FII आउटफ्लो में DIIs बने मार्केट का सहारा
डोमेस्टिक निवेशकों ने विदेशी निकासी को मजबूती से संभाला। डोमेस्टिक म्यूचुअल फंड्स की हिस्सेदारी रिकॉर्ड 10.9% पर पहुंच गई, जिसे लगातार SIP इनफ्लो और स्थिर इक्विटी खरीद का सहारा मिला। यह नौवीं लगातार तिमाही रही जब म्यूचुअल फंड ओनरशिप रिकॉर्ड पर रही, और DIIs ने FPIs को लगातार चौथी तिमाही में पीछे छोड़ा, ऐसा आखिरी बार 2003 में हुआ था।
जबकि, डायरेक्ट रिटेल ओनरशिप 9.6% पर स्थिर रही, लेकिन म्यूचुअल फंड्स को जोड़ने पर व्यक्तिगत निवेशकों का कुल कंट्रोल 18.75% हो गया, जो 22 साल का उच्चतम स्तर है। भले ही Q2FY26 में डोमेस्टिक इक्विटी वेल्थ ~₹2.6 लाख करोड़ घटी हो, लेकिन अप्रैल 2020 से कुल गेन ₹53 लाख करोड़ बना हुआ है, जिससे कुल डोमेस्टिक इक्विटी होल्डिंग ~₹84 लाख करोड़ तक पहुंच गई है।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
2025 में FII आउटफ्लो रिटेल निवेशकों को डराने वाला लग सकता है, लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं दिखाता। इतिहास बताता है कि विदेशी बिकवाली आमतौर पर शॉर्ट-टर्म दबाव बनाती है, जबकि बाजार की लॉन्ग-टर्म दिशा मजबूत बुनियादी कारकों से तय होती है। नवंबर 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, करीब 1,000 लिस्टेड कंपनियां अपने ऑल-टाइम हाई से 20% से ज्यादा गिर चुकी हैं, वहीं 440 स्टॉक्स 50% से अधिक टूट चुके हैं, और कुछ शेयरों में 90% तक की गिरावट देखी गई है।
ऐसे माहौल में घबराहट के बजाय समझदारी जरूरी है। इस तरह की गिरावट अक्सर क्वालिटी स्टॉक्स में बेहतर वैल्यूएशन का मौका देती है। साथ ही, यह भी साफ हो चुका है कि अब सिर्फ विदेशी निवेशक ही बाजार की दिशा तय नहीं करते, बल्कि डोमेस्टिक निवेशक मार्केट के ट्रेंड को आकार देने में पहले से कहीं ज्यादा अहम भूमिका निभा रहे हैं।
भविष्य की बातें
2025 में विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जहां FIIs अब तक करीब ₹152 करोड़ प्रति ट्रेडिंग घंटे की रफ्तार से भारतीय शेयर बेच चुके हैं। इसके बावजूद बाजार को बड़ा झटका नहीं लगा, क्योंकि डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने लगातार SIP इनफ्लो के दम पर इस दबाव को संभाल लिया।
हालांकि, शॉर्ट-टर्म में वोलैटिलिटी बनी रह सकती है, लेकिन CNBC TV18 के अनुसार, IKIGAI एसेट मैनेजर के CIO पंकज टिबरेवाल का मानना है कि बेहतर होती अर्निंग्स विज़िबिलिटी, मजबूत कॉरपोरेट बैलेंस शीट और सपोर्टिव मैक्रो फैक्टर्स विदेशी निवेशकों की वापसी का रास्ता खोल सकते हैं। उनका कहना है कि 2026 FII फ्लो के लिए पॉजिटिव सरप्राइज दे सकता है। इसके साथ ही निवेशक भारत-US ट्रेड डील जैसे बड़े ट्रिगर्स पर नजर बनाए रखें, क्योंकि इनका असर निर्यात और रुपये की मजबूती पर पड़ेगा।
*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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