भारत में त्योहारी सीज़न शुरू हो चुका है, और जल्द ही नवरात्रि और दिवाली मार्केट्स में और भी रौनक लाएंगी। इसी के साथ, सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए गन्ने के रस, सिरप और मोलासेस से एथेनॉल उत्पादन को मंज़ूरी दी है, जिस पर पहले पाबंदी थी। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक होने के नाते, भारत ने मौजूदा मार्केटिंग वर्ष में एथेनॉल के उत्पादन पर लिमिट लगा दी थी, क्योंकि गन्ने की उपलब्धता कम थी।
अब इस नई पॉलिसी को एक बड़ी घोषणा के रूप में देखा जा रहा है, जो चीनी कंपनियों के लिए एक नई दिशा खोल सकती है। पिछले दो सालों में, भारत में मानसून की अच्छी बारिश हुई है, और इस साल भी गन्ने के उत्पादन और सप्लाई के लिए बेहतर आउटलुक है।
क्या ये पॉज़िटिव फैक्टर्स एक साथ मिलकर इन्वेस्टर्स के लिए एक अवसर बना सकते हैं? आइए इसे समझते हैं।
क्या है मामला?
भारत सरकार ने चीनी मिलों और डिस्टिलरीज को 2025-26 सप्लाई वर्ष में गन्ने के रस, सिरप और मोलासेस से बिना किसी लिमिट के एथेनॉल उत्पादन करने की इजाज़त दे दी है। यह मौजूदा वर्ष से एक बड़ा बदलाव है, जब गन्ने की सप्लाई कम होने की वजह से उत्पादन पर पाबंदी लगा दी गई थी।
नया एथेनॉल सप्लाई वर्ष 1 नवंबर से शुरू होगा, और उम्मीद है कि इस फैसले से उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि दो सालों तक अच्छी मानसून बारिश के बाद किसानों ने गन्ने की ज़्यादा बुवाई की है।
इसके अलावा, साल भर घरों में पर्याप्त चीनी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, डिपार्टमेंट ऑफ़ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन (DFPD) समय-समय पर यह समीक्षा करता रहेगा कि एथेनॉल की ओर कितनी चीनी डाइवर्ट की जा रही है।
इस कदम का चीनी कंपनियों और व्यापारियों ने स्वागत किया है, और इससे मार्केट में शुगर स्टॉक्स में भी उछाल आया है। आखिरकार, इस कदम से न सिर्फ़ एथेनॉल ब्लेंडिंग टारगेट हासिल होगा बल्कि इम्पोर्ट बिल भी कम होगा, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी आएंगी।
एथेनॉल से जुड़ी फसलों की ओर किसानों का रुझान: एक बढ़ती हुई चुनौती
सरकार का यह कदम एथेनॉल ब्लेंडिंग टारगेट को आगे बढ़ा रहा है और किसानों को गन्ना, मक्का व ज्वार जैसी फसलों की ओर मोड़ रहा है, क्योंकि एथेनॉल गन्ने के साथ मक्का, ज्वार, धान की भूसी और गेहूं के भूसे से भी बनता है।
इससे खेती का पैटर्न बदला है – तिलहन का रकबा 4% घटा है जबकि मक्का की बुवाई 10.5% बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। बढ़ती डिमांड के चलते मक्के की कीमतें सोयाबीन से ऊपर चली गई हैं, और किसानों को यह अधिक लाभकारी लग रहा है क्योंकि इससे एथेनॉल के साथ चारा भी मिलता है।

इथेनॉल की बढ़ती डिमांड के कारण भारत में मक्के की प्राइस सोयाबीन से आगे निकल गईं।
हालांकि, इस बदलाव से नई चुनौतियां भी सामने आई हैं। भारत खाने वाले तेल का एक बड़ा आयातक देश है, और आयात दो दशक पहले के 4.4 मिलियन टन से बढ़कर 2023-24 में 16 मिलियन टन हो गया है, जिससे यह इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल और अर्जेंटीना, ब्राज़ील, रूस और यूक्रेन से सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है।

भारत में खाद्य तेल की डिमांड बढ़ रही है, लेकिन डोमेस्टिक उत्पादन पिछड़ रहा है क्योंकि किसान इथेनॉल फसलों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे आयात बढ़ रहा है।
सरकार आयात पर निर्भरता घटाना चाहती है, मगर तिलहन में गिरावट और एथेनॉल-केंद्रित फसलों का बढ़ना इस प्रगति को धीमा कर रहा है। इसी बीच, एथेनॉल प्लांट्स से निकलने वाला प्रोटीन-समृद्ध बाय-प्रोडक्ट डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विथ सॉल्यूबल्स (DDGS) चारा मार्केट को और जटिल बना रहा है।
एथेनॉल को लेकर विवाद – अतिरिक्त चिंताएं बढ़ा रहा है
सरकार का मानना है कि पेट्रोल में 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग से तेल आयात बिल घटेगा, कार्बन उत्सर्जन कम होगा और गन्ना किसानों को स्थिर इनकम मिलेगी। लेकिन उपभोक्ताओं को दिक्कतें दिख रही हैं, अप्रैल 2023 से पहले बने वाहन E20 के साथ पूरी तरह कंपैटिबल नहीं हैं, जिससे इंजन नॉकिंग, कोरोजन, कम माइलेज और पार्ट्स के जल्दी घिसने की समस्या हो रही है। वाहन निर्माता वारंटी क्लेम्स और मरम्मत खर्च से चिंतित हैं, जबकि वाहन मालिक 6-8% कम फ्यूल एफिशिएंसी की शिकायत कर रहे हैं, जिससे एथेनॉल सस्ता होने के बावजूद प्रति किलोमीटर खर्च बढ़ रहा है।
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार, इन्हीं कारणों से वकील अक्षय मल्होत्रा ने याचिका दायर कर एथेनॉल-फ्री पेट्रोल की उपलब्धता, पंपों पर सही लेबलिंग और वाहन कंपैटिबिलिटी की जानकारी देने की मांग की थी, यह कहते हुए कि E20 से मैकेनिकल डैमेज, भारी मरम्मत खर्च और बीमा क्लेम्स के खारिज होने जैसी समस्याएं हो रही हैं।
लेकिन 1 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर देशभर में E20 के रोलआउट को मंजूरी दे दी।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
सरकार द्वारा एथेनॉल उत्पादन पर लगी लिमिट हटाने के बाद, 2 सितंबर को भारी ट्रेडिंग वॉल्यूम्स के साथ शुगर स्टॉक्स में तेज़ी से रैली देखी गई। इस कदम से चीनी कंपनियां अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल कर सकती हैं और ज़्यादा गन्ने के रस या बी-हेवी मोलासेस को एथेनॉल की तरफ़ डाइवर्ट कर सकती हैं, जिससे चीनी से ज़्यादा बेहतर रिटर्न मिलता है। इससे मार्जिन बढ़ने और इस सेक्टर के लिए लॉन्ग-टर्म आउटलुक बेहतर होने की उम्मीद है।
मार्केट के एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह रैली नज़दीकी भविष्य में भी जारी रह सकती है। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के रुचित जैन के अनुसार, शुगर स्टॉक्स कुछ समय से कंसोलिडेट हो रहे थे, और इस ताज़ा पॉज़िटिव ख़बर से, जिसे ओवरऑल मार्केट के मोमेंटम का सपोर्ट मिला है, शॉर्ट रन में और भी तेज़ी आ सकती है।
भविष्य की बातें
भारत पहले ही अपने E20 टारगेट को समय से पांच साल पहले पूरा कर चुका है। साथ ही, इससे किसानों को ₹1.21 लाख करोड़ से ज़्यादा की इनकम मिली है, क्रूड आयात में लगभग 238.68 लाख मीट्रिक टन की कटौती हुई है, और ₹1.40 लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। अब सरकार इंडस्ट्री के सपोर्ट और फिस्कल इनसेंटिव के साथ धीरे-धीरे E25, E27 और E30 जैसे हाई ब्लेंड की ओर आगे बढ़ने की योजना बना रही है।
इसके अलावा, वाहन निर्माताओं ने पहले से ही फ्लेक्स-फ्यूल व्हीकल्स के प्रोटोटाइप रोल आउट करना शुरू कर दिया है, जो E85 तक के ब्लेंड पर चल सकते हैं, जिससे अगले स्टेज के लिए उनकी तैयारी दिख रही है।
एथेनॉल के अलावा, भारत सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल पर भी काम कर रहा है। 2027 तक इंटरनेशनल फ़्लाइट्स के लिए 1% और 2028 तक 2% ब्लेंडिंग मैंडेट तय किया गया है।
*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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