भारत सरकार अपने सेमीकंडक्टर मिशन को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए तैयार है। इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन 2.0 के लिए एक विशाल पैकेज प्रस्तावित किया गया है, जो देश के सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को तेजी से आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। यह पहल भारत को आत्मनिर्भर बनाने और ग्लोबल सेमीकंडक्टर हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आइए समझते हैं कि भारतीय सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में क्या हो रहा है और क्या भारत स्वदेशी चिप बनाने में सफल हो पाएगा।
क्या है मामला?
इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन ने देश की इलेक्ट्रॉनिक्स और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूत नींव रखी है। 2021 में ₹76,000 करोड़ के शुरुआती आउटले से शुरू हुए इस मिशन ने कुछ ही वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई। 2023 से 2025 के बीच 6 राज्यों में 10 बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई, जिससे कुल मिलाकर लगभग ₹1.60 लाख करोड़ का निवेश आकर्षित हुआ।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 में यह ऐलान हुआ कि भारत का पहला स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप इस साल प्रोडक्शन के लिए तैयार होगा। फिलहाल पाँच प्रोडक्शन यूनिट्स निर्माणाधीन हैं, जो डोमेस्टिक क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक अहम उपलब्धि मानी जा रही है।
इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन 2.0 (ISM 2.0) अब इस यात्रा को अगले चरण में ले जाने के लिए तैयार है, जहाँ जोर केवल प्रोडक्शन पर नहीं बल्कि संपूर्ण इकोसिस्टम को ग्लोबल स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने पर होगा।
ISM 2.0: चिप बनाने के लिए एक इकोसिस्टम तैयार करना
अब सरकार का ध्यान मिशन के दूसरे चरण, यानी ISM 2.0 पर है, जिसका लक्ष्य और भी बड़ा है। इसके लिए सरकार ने $20 बिलियन के एक नए पैकेज का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसे 2025 के अंत तक मंजूरी मिलने की उम्मीद है। ISM 2.0 का मकसद सिर्फ चिप बनाना नहीं, बल्कि भारत में चिप इंडस्ट्री से जुड़ी हर चीज़ को विकसित करना है। इसमें देश की पहली डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट की स्थापना भी शामिल होगी।
प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय की मंजूरी अक्टूबर तक मिलने की उम्मीद है, जिसके बाद इसे 2025 के अंत से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने पेश किया जाएगा। ISM 2.0 के तहत सरकार डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव्स (DLI) के लिए ₹5,000 करोड़ का प्रावधान करेगी, जो पिछले चरण के ₹1,500 करोड़ से तीन गुना से भी अधिक है।
वर्तमान प्रगति और स्वीकृत प्रोजेक्ट्स
भारत का सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम तेजी से मजबूत हो रहा है। जून 2023 से अगस्त 2025 के बीच कई बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिली है। माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने गुजरात में 22,516 करोड़ रुपये से ATMP फैसिलिटी शुरू की, जबकि टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने धोलेरा में 91,000 करोड़ रुपये के निवेश से 50,000 वेफर्स प्रति माह क्षमता वाली यूनिट स्थापित की। असम के मोरीगांव में टाटा का 27,000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट प्रतिदिन 48 मिलियन चिप्स का उत्पादन करेगा।
इसके साथ ही CG पावर, कायनेस सेमीकॉन और HCL-फॉक्सकॉन JV को भी मंजूरी मिल चुकी है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले मंत्रिमंडल ने चार और प्रोजेक्ट्स (SiCSem, CDIL, 3D ग्लास सॉल्यूशंस और ASIP टेक्नोलॉजीज) को हरी झंडी दी है, जिनमें कुल 4,600 करोड़ रुपये का निवेश होगा।
सिर्फ इतना ही नहीं, सितंबर 2, 2025 को केंद्रीय IT मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रधानमंत्री मोदी को भारत का पहला स्वदेशी माइक्रोप्रोसेसर ‘विक्रम 3201’ प्रस्तुत किया, जो इसरो की सेमीकंडक्टर लेबोरेटरी द्वारा विकसित किया गया है।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन 2.0 के तहत प्रस्तावित 20 बिलियन डॉलर का निवेश भारतीय स्टॉक मार्केट के निवेशकों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है। इस मिशन के बाद सेमीकंडक्टर सेक्टर में कार्यरत लिस्टेड कंपनियों में इसका असर देखने को मिल सकता है।
सरकार द्वारा डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) स्कीम के बजट को तीन गुना बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये कर देने से स्टार्टअप्स और चिप डिजाइन कंपनियों में उच्च ग्रोथ नजर आ सकती है, जो शेयर मार्केट में बेहतर रिटर्न की उम्मीद जगाती है। छोटे व मिड-कैप इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग वेंडर्स व अन्य संबंधित सेग्मेंट्स को भी इस सेक्टर-बूम का लाभ मिल सकता है।
भविष्य की बातें
भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट 2023 में जहां 38 अरब डॉलर का था, वहीं 2030 तक 100-110 बिलियन डॉलर के साइज तक बढ़ने का अनुमान है। इसी तेजी से बढ़ते मार्केट के बीच, 2025 में भारत की पहली स्वदेशी चिप का प्रोडक्शन शुरू होना आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

भारत का सेमीकंडक्टर मार्केट 2024-25 से 2030 तक दोगुना तक होने की उम्मीद है।
इसके साथ ही, देश अब पारंपरिक सिलिकॉन चिप्स से आगे बढ़कर सिलिकॉन कार्बाइड जैसे नए मटेरियल पर आधारित चिप्स की ओर बढ़ रहा है। इसके साथ ही, नोएडा और बेंगलुरु में 3-नैनोमीटर चिप डिजाइन के आधुनिक केंद्र खोले जा चुके हैं। डिफेंस, मिसाइल और रॉकेट जैसे क्षेत्रों के लिए 3D ग्लास पैकेजिंग तकनीक पर भी तेजी से काम हो रहा है।
*आर्टिकल में शामिल कंपनियों के नाम केवल सूचना के उद्देश्य के लिए है। यह निवेश सलाह नहीं है।
*डिस्क्लेमर: तेजी मंदी डिस्क्लेमर