भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट इंडस्ट्री: ट्रेंड और चुनौतियाँ

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट इंडस्ट्री: ट्रेंड और चुनौतियाँ
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भारत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए जरूरी पुर्जों की मांग बढ़ रही है! जानिए इस मार्केट का भविष्य और चुनौतियां।

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट इंडस्ट्री: ट्रेंड और चुनौतियाँ

भारत में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मार्केट तेजी से बढ़ रहा है, जो तेजी से बढ़ते इंडस्ट्रीलायलाइजेशन, अर्बनाइजेशन और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती डिमांड से प्रेरित है। इस मार्केट में सेमीकंडक्टर्स, कैपेसिटर्स, रेसिस्टर्स, इंडक्टर्स और कनेक्टर्स जैसे विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट शामिल हैं।

कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जो भारत के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मार्केट की विशाल क्षमता को उजागर करती है, आने वाले वर्षों में इस सेक्टर के लिए एक उज्ज्वल तस्वीर पेश करती है।
आइए अब हम भारत के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मार्केट को एक्स्प्लोर करें और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं कि डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग की बढ़ती डिमांड को पूरा कर सके।

क्या है मामला?

CII रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सब-असेंबलीज की डोमेस्टिक डिमांड पांच गुना बढ़कर 2030 तक $240 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो कुल $500 बिलियन के प्रोडक्शन का समर्थन करेगी। 2023 तक, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सब-असेंबलीज की मार्केट डिमांड $45.5 बिलियन है, जो $102 बिलियन के प्रोडक्शन का समर्थन करती है।

रिपोर्ट सेमीकंडक्टर्स, कैपेसिटर्स, लिथियम-आयन बैटरीज और मदरबोर्ड जैसे महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स के आयात पर निर्भरता बनाये रखने पर चिंता व्यक्त करती है। CII भारत सरकार से इन कंपोनेंट्स के उत्पादन पर जोर देने और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम को रिवाइज करने का आग्रह करता है, जो अगले आठ वर्षों में 35-40% की सीमा में प्रोत्साहन प्रदान करता है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग में चुनौतियां

इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं:

सप्लाई चेन डिस्रप्शन: रॉ मटेरियल और कंपोनेंट्स की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले ग्लोबल सप्लाई चेन मुद्दे। भारत फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट रॉ मटेरियल के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

हाई कॉम्पिटिशन: भारतीय कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है जिनके पास अधिक पूंजी और एडवांस तकनीक है।

तकनीकी अप्रचलन: तेजी से तकनीकी प्रगति के कारण प्रोडक्ट्स का जीवन चक्र कम हो जाता है।

हायर कॉस्ट्स: उच्च आयात शुल्क के बावजूद, चीन, वियतनाम और दक्षिण कोरिया से आयात करना भारत में कंपोनेंट्स बनाने से अभी भी सस्ता है।

निवेशकों के लिए इसमें क्या है?

प्राथमिकता वाले कंपोनेंट्स और सब-असेंबलीज, जिनमें PCBA शामिल हैं, का अनुमान 30% की मजबूत CAGR से बढ़ने का है, जो 2030 तक USD 139 बिलियन तक पहुंच जाएगा। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मार्केट अगले पांच वर्षों में लगभग 10-12% की CAGR से बढ़ने की उम्मीद है। प्रमुख ग्रोथ सेक्टर्स कंस्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन होंगे।

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट इंडस्ट्री: ट्रेंड और चुनौतियाँ

भविष्य की बातें

रिपोर्ट में ग्लोबल प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए जरूरी उपकरणों और कंपोनेंट्स पर आयात शुल्क घटाकर 5% से कम करने की सलाह दी गई है। साथ ही यह यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, GCC देशों और इमर्जिंग अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से मुक्त व्यापार समझौतों की मांग भी करता है। इस नीतिगत समर्थन से 2026 तक लगभग 2,80,000 नौकरियां पैदा होने और GDP को बढ़ावा देने की उम्मीद है, जो भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में मजबूत करेगा।

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*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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