भारत में प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन: ग्रोथ, चुनौतियाँ और भविष्य

भारत में प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन: ग्रोथ, चुनौतियाँ और भविष्य
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पारंपरिक तरीकों से घर बनाने में समय, मेहनत लगती है और मौसम का असर पड़ता है, जटिल कोऑर्डिनेशन की वजह से अक्सर देरी और लागत बढ़ जाती है। प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन इन चुनौतियों को दूर करता है, प्रक्रियाओं को सुगम बनाता है, समय कम करता है और साइट पर मजदूरों की जरूरत घटाता है।

वास्तव में, 2022 में लार्सन एंड टूब्रो ने सिर्फ 45 दिनों में DRDO की 7-मंजिला फैसिलिटी बनाई, जो दिखाता है कि प्रीफैब टेक्नोलॉजी भारत के कंस्ट्रक्शन सेक्टर को कैसे बदल रही है। हाउसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्रियल सुविधाओं की बढ़ती डिमांड और लागत के दबाव के साथ, प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

आइए, प्रीफैब्रिकेटेड इंडस्ट्री को विस्तार से समझें और देखें कि क्या यह निवेशकों के लिए एक अवसर प्रस्तुत करती है।

भारत में प्रीफैब्रिकेटेड मार्केट की वर्तमान स्थिति

FY24 में भारत में प्रीफैब्रिकेटेड मार्केट का साइज लगभग ₹435 से 455 बिलियन था और यह हर साल 9.5% से 11.5% की दर से बढ़कर FY29 तक ₹715 से 750 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है।

भारत का प्रीफैब्रिकेटेड मार्केट हर साल 9.5% से 11.5% की दर से बढ़ने वाला है, और FY29 तक ₹715-750 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।

हालांकि, प्रीफैब्रिकेटेड स्ट्रक्चर्स अभी देश के $100 बिलियन के रियल एस्टेट मार्केट का सिर्फ 1% से 2% हिस्सा हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी तेजी से आगे बढ़ रही है और अपनाने वालों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि पारंपरिक कंस्ट्रक्शन की तुलना में प्रोजेक्ट्स जल्दी पूरे हो जाते हैं।

वहीं, ग्लोबल प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन मार्केट 2019 में $167 बिलियन से बढ़कर 2023 में $178 बिलियन हो गया, जो मध्यम वृद्धि दिखाता है। 2024 से 2028 के बीच यह 5% से 6% सालाना की दर से बढ़कर 2028 तक $230 से 240 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। यह वृद्धि जागरूकता, सस्टेनेबल सॉल्यूशंस की डिमांड और तेज शहरीकरण की वजह से होगी।

प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग्स क्या हैं?

प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग्स ऐसा स्ट्रक्चर हैं जिनके पार्ट्स फैक्ट्री में बनाए जाते हैं और फिर कंस्ट्रक्शन साइट पर असेंबल किए जाते हैं। इन पार्ट्स में दीवारें, फर्श, छत या पूरे मॉड्यूल शामिल हो सकते हैं। चूंकि ये कंट्रोल्ड वातावरण में बनते हैं, इसलिए इनकी क्वालिटी बेहतर होती है और देरी की संभावना कम होती है।

यह तरीका पारंपरिक कंस्ट्रक्शन से तेज है और डिजाइन में फ्लेक्सिबिलिटी देता है। प्रीफैब बिल्डिंग्स का उपयोग घरों, ऑफिसों, स्कूलों, अस्पतालों, दुकानों, वेयरहाउस और फैक्ट्रियों में होता है। ये किफायती, कस्टमाइजेबल हैं और कम समय में पूरी हो जाती हैं, साथ ही मजबूती और ड्यूरेबिलिटी भी बनाए रखती हैं।

भारत में प्रीफैब्रिकेटेड इंडस्ट्री के ग्रोथ ड्राइवर्स

तेज शहरीकरण: भारत की शहरी आबादी 1960 के 18% से बढ़कर 2030 तक 40% होने का अनुमान है। इस तेज बढ़त के कारण हाउसिंग, हेल्थकेयर, एजुकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर की तत्काल मांग बढ़ रही है। प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन इन जरूरतों को कम समय में पूरा करने का कारगर तरीका है।

सरकारी आवास और विकास योजनाएं: प्रधानमंत्री आवास योजना और लाइट हाउस प्रोजेक्ट्स जैसी पहलों से किफायती आवास को बढ़ावा मिल रहा है। प्रीफैब तेज असेंबली और कम लागत में मदद करके इन लक्ष्यों को पूरा कर रहा है। ये योजनाएं मॉड्यूलर कंस्ट्रक्शन की बड़े पैमाने पर मांग पैदा कर रही हैं।

पब्लिक फैसिलिटीज और सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर: प्रीफैब्रिकेटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग अस्पतालों, स्कूलों और यहां तक कि आयोध्या के घाटों पर बने मॉड्यूलर टॉयलेट्स जैसी परियोजनाओं में हो रहा है। ये प्रोजेक्ट्स दिखाते हैं कि रेडी-टू-असेंबल किट्स कैसे एक्जीक्यूशन टाइम कम करते हुए फंक्शनैलिटी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह तरीका समय-संवेदनशील सार्वजनिक जरूरतों के लिए जरूरी है।

सस्टेनेबिलिटी और रिसोर्स एफिशिएंसी: यह मटेरियल वेस्ट को कम करता है और रिसोर्स कंजम्प्शन को लगभग 20% तक घटा सकता है। यह बेहतर इंसुलेशन से थर्मल एफिशिएंसी बढ़ाता है और हल्के स्टील फ्रेम्स का उपयोग करके भूकंप-रोधी डिजाइन भी देता है। यह भारत के पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ अच्छी तरह मेल खाता है।

लग्जरी सेगमेंट में बढ़ता उपयोग: किफायती आवास से आगे, हाई-एंड डेवलपर्स प्रीमियम, कस्टमाइजेबल होम्स के साथ-साथ होटल्स और रिसॉर्ट्स के लिए भी प्रीफैब का उपयोग कर रहे हैं। ये प्रोजेक्ट्स मॉडर्न डिजाइन को एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के साथ जोड़ते हैं ताकि क्वालिटी से समझौता किए बिना तेजी से डिलीवरी की जा सके। यह अलग-अलग मार्केट सेगमेंट्स में प्रीफैब्रिकेटेड एडॉप्शन को बढ़ा रहा है।

कॉस्ट और टाइम एफिशिएंसी: यह साइट पर लेबर कॉस्ट को कम करता है और मौसम या मटेरियल की कमी से होने वाली देरी से बचाता है। तेज असेंबली और फैक्ट्री-कंट्रोल्ड प्रोसेसेस कंपनियों को सख्त डेडलाइन्स पूरा करने में मदद करते हैं, जिससे यह बड़े पैमाने के कमर्शियल और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए आदर्श बनता है।

एमर्जिंग सेक्टर्स में बढ़ती डिमांड: लॉजिस्टिक्स, कोल्ड स्टोरेज और हेल्थकेयर इंडस्ट्रीज तेजी से प्रीफैब सॉल्यूशंस का उपयोग कर रही हैं। बढ़ते ई-कॉमर्स मार्केट के लिए वेयरहाउसेस और डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर्स जल्दी बनाए जा सकते हैं, जबकि अस्पतालों और कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज को प्रीफैब की स्केलेबिलिटी, इंसुलेशन और तेज सेटअप से फायदा होता है।

प्रीफैब्रिकेटेड इंडस्ट्री में चुनौतियाँ

कम मार्केट अवेयरनेस: कई ग्राहक और कॉन्ट्रैक्टर्स प्रीफैब्रिकेटेड बिल्डिंग्स के फायदों से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं। ड्यूरेबिलिटी, सेफ्टी और सीमित कस्टमाइजेशन विकल्पों को लेकर चिंताएं अक्सर पारंपरिक कंस्ट्रक्शन तरीकों को तरजीह देने का कारण बनती हैं। पारंपरिक तकनीकों के लिए सांस्कृतिक पसंद भी एडॉप्शन को धीमा करती है।

स्किल गैप्स और लेबर शॉर्टेज: प्रीफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन के लिए विशेष कौशल और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की जानकारी चाहिए, जो अभी भी कई कर्मचारियों के लिए नई है। वर्कर्स को ट्रेनिंग देना समय लेता है और कंपनी की लागत बढ़ाता है, जिससे ऑपरेशन्स को स्केल करने में बाधाएं आती हैं।

अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर का दबदबा: इंडस्ट्री का एक बड़ा हिस्सा अनऑर्गेनाइज्ड प्लेयर्स का है जो अक्सर सिर्फ कीमत पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे ऑर्गेनाइज्ड कंपनियों पर दबाव बनता है और सुरक्षा संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं जब छोटे प्लेयर्स कम गुणवत्ता वाले मटीरियल्स का उपयोग करते हैं।

सप्लाई चेन की सीमाएँ: भारत में प्रीफैब मैन्युफैक्चरिंग के लिए हाई-क्वालिटी रॉ मटीरियल्स के विश्वसनीय सप्लायर्स कम हैं। यह सीमित उपलब्धता सप्लायर्स की बार्गेनिंग पावर बढ़ाती है, जिससे मैन्युफैक्चरर्स देरी, ऊंची कीमतों और क्वालिटी रिस्क्स के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।

वॉचलिस्ट में शामिल करने योग्य स्टॉक्स

भविष्य की संभावनाएँ

भारत का प्रिफैब्रिकेटेड कंस्ट्रक्शन सेक्टर धीरे-धीरे एक्सपेरिमेंटल स्टेज से मेनस्ट्रीम की ओर बढ़ रहा है। इसमें मॉड्यूलर प्रिफैब्रिकेटेड सेगमेंट, जो पूरे प्रिफैब्रिकेटेड इंडस्ट्री का एक हिस्सा है, में पोर्टेबल कैबिन्स, गार्डरूम्स और सेमी-परमानेंट बिल्डिंग्स फैक्ट्री सेटिंग्स में बनाई जाती हैं। इस सेगमेंट का वैल्यूएशन FY24 में लगभग ₹17 बिलियन था और उम्मीद है कि यह FY29 तक बढ़कर ₹28-30 बिलियन तक पहुँच जाएगा, जिसमें हर साल 10-12% की ग्रोथ होगी।

इसके अलावा, प्री-इंजीनियर्ड बिल्डिंग्स (PEB) सेगमेंट, खासतौर पर वेयरहाउस, शेड्स और डिपो के लिए, भी तेजी से बढ़ रहा है। डिजाइन और इस्तेमाल के आधार पर, PEBs पारंपरिक स्ट्रक्चर्स से 15-35% तक सस्ते हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में ये 20-25% महंगे भी पड़ सकते हैं। भारतीय PEB मार्केट FY19 में ₹130 बिलियन से बढ़कर FY24 में ₹195 बिलियन तक पहुँच गया, जिसमें लगभग 8% का CAGR देखने को मिला। अनुमान है कि यह FY29 तक ₹315-330 बिलियन तक पहुँच जाएगा, जिसमें सालाना 10-11% की ग्रोथ होगी। यह ग्रोथ इंडस्ट्रियल और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में होने वाले इन्वेस्टमेंट्स से सपोर्ट होगी।

*आर्टिकल में शामिल कंपनियों के नाम केवल सूचना के उद्देश्य के लिए है। यह निवेश सलाह नहीं है।
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