2030 तक $44 बिलियन की होगी भारत की स्पेस इकॉनमी

2030 तक $44 बिलियन की होगी भारत की स्पेस इकॉनमी
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भारत का स्पेस क्षेत्र एक असाधारण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। जहाँ पहले यह सिर्फ सरकारी संस्था ISRO के नेतृत्व में काम करता था, वहीं अब प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी से एक नया युग शुरू हुआ है। लेकिन यह केवल एक नीतिगत बदलाव नहीं बल्कि संरचनात्मक और आर्थिक क्रांति है जो भारत को ग्लोबल स्पेस अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख प्लेयर के रूप में स्थापित कर रही है।

आइए समझते हैं कि भारतीय स्पेस सेक्टर में प्राइवेट प्लेयर्स की भागीदारी कैसे बढ़ रही है और यह निवेशकों के लिए क्या मायने रखती है।

क्या है मामला?

भारत का स्पेसटेक सेक्टर 2025 में बदलाव की नई उड़ान भरने को तैयार है। सरकार ने 2030 तक $44 बिलियन स्पेस इकॉनमी का लक्ष्य तय किया है और यह मार्केट 2023 से 2030 के बीच 26% CAGR से बढ़ने की उम्मीद है।

2020 तक भारत के स्पेस मिशन केवल ISRO के नियंत्रण में थे। लेकिन उसी वर्ष सरकार ने ऐतिहासिक नीति बदलाव करते हुए निजी कंपनियों को भागीदारी की अनुमति दी। इस दिशा में न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की स्थापना हुई, जिसने प्राइवेट प्लेयर्स को सैटेलाइट लॉन्च, स्पेसक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग और ग्राउंड सिस्टम डेवलपमेंट में हिस्सा लेने का अवसर दिया। यह कदम इनोवेशन को बढ़ावा देने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और भारत की वैश्विक स्पेस इंडस्ट्री में स्थिति मजबूत करने के लिए उठाया गया था।

सरकारी नीतियों का योगदान

भारत सरकार ने स्पेस सेक्टर को प्राइवेट भागीदारी के लिए खोलने हेतु कई महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए हैं। इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023 ने सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग में 100% डायरेक्ट विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है। साथ ही ग्राउंड/यूजर सेगमेंट में 74% FDI और लॉन्च व्हीकल डेवलपमेंट में 49% FDI की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

सिर्फ इतना ही नहीं, सरकार का सबसे महत्वाकांक्षी कदम अक्टूबर 2024 में 1,000 करोड़ रुपए के वेंचर कैपिटल फंड की घोषणा था। इसके आधार पर, सरकार ने पहले ही IN-SPACe के नेतृत्व में ₹10,000 करोड़ का फंड स्थापित कर दिया है। इस फंड से अगले पाँच वर्षों में स्पेस टेक से संबंधित 40 से अधिक बड़ी और छोटी कंपनियों में निवेश किया जाएगा। प्रत्येक कंपनी को ₹10 करोड़ से ₹60 करोड़ तक का निवेश मिलेगा।

इसके अलावा, स्पेस-बेस्ड रिमोट सेंसिंग पॉलिसी 2020 और स्पेसकॉम पॉलिसी 2020 ने प्राइवेट क्षेत्र के लिए स्पष्ट स्ट्रक्चर प्रदान किया है। यूनियन बजट 2025-26 में भी स्पेस विभाग को 13,416 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

राज्यों की महत्वाकांक्षी योजनाएं

कर्नाटक ने ड्राफ्ट कर्नाटक स्पेस टेक्नोलॉजी पॉलिसी 2024-29 के माध्यम से राष्ट्रीय स्पेस मार्केट का 50% और ग्लोबल स्पेस अर्थव्यवस्था का 5% हिस्सा हासिल करने का लक्ष्य रखा है। यह राज्य 25,590 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित करने और 500 से अधिक स्टार्टअप एवं MSME की सहायता करने की योजना बना रहा है। साथ ही 5,000 प्रोफेशनल्स को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य है, जिसमें 1,500 महिलाएं शामिल होंगी।

इसके अलावा, तमिलनाडु ने स्पेस इंडस्ट्रियल पॉलिसी 2025 को मंजूरी देकर 10,000 करोड़ रुपए के निवेश और 10,000 उच्च-गुणवत्ता वाली नौकरियों का लक्ष्य रखा है। राज्य मदुरई, तूतीकोरिन, तिरुनेलवेली और विरुधुनगर में विशेष ‘स्पेस बे’ (Space Bays) की स्थापना करेगा।

निवेशकों के लिए इसमें क्या है?

भारत का स्पेसटेक सेक्टर तेजी से बदल रहा है। जहाँ HAL, BEL और मिधानी जैसी PSU कंपनियां एयरोस्पेस और डिफेंस तकनीक में अपनी भूमिका निभा रही हैं, वहीं प्राइवेट प्लेयर्स भी अहम भूमिका निभा रही हैं।

लार्सन एंड टुब्रो (L&T) चंद्रयान और गगनयान जैसे मिशन में सहयोग कर रही है, जबकि डेटा पैटर्न्स और MTAR टेक्नोलॉजीज सैटेलाइट सबसिस्टम और लॉन्च व्हीकल कंपोनेंट्स में अहम योगदान दे रहे हैं। इसी तरह वाल्चंदनगर इंडस्ट्रीज, लिंडे इंडिया और सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स प्रिसिजन इंजीनियरिंग, क्रायोजेनिक सॉल्यूशंस और कम्युनिकेशन सबसिस्टम के ज़रिए अपनी पहचान बना रहे हैं।

इसके साथ ही, 2024 में इन्फोसिस ने गैलेक्सआई स्पेस सॉल्यूशंस में ₹17 करोड़ का निवेश किया, जबकि अल्फाबेट इंक ने पिक्सेल में ₹307.08 करोड़ लगाकर इस सेक्टर की लॉन्गटर्म क्षमता का भरोसा जताया है।

भले ही 2024 में स्पेसटेक स्टार्टअप फंडिंग में 35% गिरावट आई हो, लेकिन डील्स की संख्या 11 से बढ़कर 14 हुई और कुल फंडिंग में 20% की वृद्धि दर्ज हुई। यह साफ दिखाता है कि भारत के स्पेसटेक बूम की अगुवाई प्राइवेट कंपनियां कर रही हैं।

भविष्य की बातें

भारतीय स्पेसटेक अब केवल डोमेस्टिक मार्केट तक सीमित नहीं रह गए हैं। स्काईरूट ने भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-एस लॉन्च किया, जो प्राइवेट कक्षीय पहुंच में एक ऐतिहासिक बदलाव को चिह्नित करता है। अग्निकुल कॉसमॉस भारत का पहला सेमी-क्रायोजेनिक, 3D-प्रिंटेड इंजन विकसित कर रहा है और इसे श्रीहरिकोटा में अपने प्राइवेट लॉन्चपैड से लॉन्च करने की योजना है। पिक्सेल हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट के माध्यम से फसल स्वास्थ्य, प्रदूषण और जलवायु की रीयल-टाइम ट्रैकिंग में क्रांति ला रहा है।

इसके अलावा, ग्लोबल स्पेस अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी, मजबूत नीतिगत समर्थन और इनोवेशन की भावना के साथ, यह सेक्टर आने वाले दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि का महत्वपूर्ण स्तंभ बनने के लिए तैयार है।

*आर्टिकल में शामिल कंपनियों के नाम केवल सूचना के उद्देश्य के लिए है। यह निवेश सलाह नहीं है।
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