गोल्ड और सिल्वर जैसी प्राइसी धातुओं के साथ-साथ कॉपर की प्राइस में भी भारी तेजी आई है, जिसने जिंक और एल्युमिनियम जैसे अन्य बेस मेटल्स को पीछे छोड़ दिया है। कॉपर न केवल अपने स्वास्थ्य लाभों के लिए, बल्कि इंडस्ट्रियल उपयोग में रॉ मटेरियल और तैयार प्रोडक्ट्स के रूप में भी लोकप्रिय है। चाहे आपकी कॉपर की पानी की बोतल हो, प्यूरीफायर हो, या एयर कंडीशनर, सभी में कॉपर होता है।
सीमित खोज और पुरानी टेक्नोलॉजी के कारण भारत कॉपर का एक नेट इम्पोर्टर बना हुआ है। वर्तमान प्रोडक्शन रेट पर, ज्ञात रिज़र्व लगभग 45 वर्षों तक चलने का अनुमान है, जो वैकल्पिक सप्लाई स्रोतों और प्रभावी रीसाइक्लिंग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
यह विज़ुअल गाइड हालिया कॉपर प्राइस रैली, इसके मुख्य कारणों को कवर करती है, और बताती है कि निवेशकों को बेस मेटल्स को क्यों ट्रैक करना चाहिए।

भविष्य की संभावनाएं
2050 तक भारत के दूसरा सबसे बड़ा कॉपर खपत वाला देश बनने की उम्मीद है, लेकिन भारत एक नेट इम्पोर्टर है और इसकी कॉपर सप्लाई चेन में आत्मनिर्भरता की कमी है। कंस्ट्रक्शन, इंडस्ट्री और इलेक्ट्रिसिटी जैसे सेक्टर्स में FY30 तक डोमेस्टिक डिमांड 3.24 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है।
एनर्जी ट्रांजिशन सेक्टर, हालांकि आज छोटा है, तेजी से बढ़ने के लिए तैयार है, FY30 तक इसकी मांग 274 हजार टन होने का अनुमान है।
भारत के क्लाइमेट लक्ष्यों में 2070 तक नेट-जीरो एमिशन्स हासिल करना और 2030 तक स्थापित बिजली क्षमता का 50% क्लीन एनर्जी से उत्पन्न करना शामिल है, जिससे कॉपर की मांग और बढ़ेगी।
कॉपर की प्राइस के संबंध में, मोतीलाल ओसवाल को उम्मीद है कि प्राइस बहुत तेज़ी में रहेंगी, और मीडियम से लॉन्ग टर्म में LME पर $11,700 प्रति टन और MCX पर ₹1,080 प्रति किलोग्राम तक पहुंचने की क्षमता है।
*आर्टिकल में शामिल कंपनियों के नाम केवल सूचना के उद्देश्य के लिए है। यह निवेश सलाह नहीं है।
*डिस्क्लेमर: तेजी मंदी डिस्क्लेमर