भारत ने ईरान के साथ चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत भारत ईरान के चाबहार पोर्ट पर स्थित शहीद बेहशती टर्मिनल के डेवलपमेंट और ऑपरेशन के लिए $120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा, साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए $250 मिलियन डॉलर की क्रेडिट विंडो भी रखी गयी है।
मगर, यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि 2016 में भी दोनों देशों ने मिलकर इसी पोर्ट को विकसित करने का एक औपचारिक समझौता किया था। तो फिर ये अभी खबरों में क्यों है? और आखिर चाबहार पोर्ट है क्या? साथ ही यह भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
क्या है मामला?
13 मई को भारत और ईरान के बीच हुए इस समझौते को भारत की इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) की ओर से किया गया है। इस समझौते के तहत, भारत अगले 10 सालों तक ईरान के चाबहार पोर्ट को ऑपरेट करेगा। यह समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ईरान के बीच हुआ है।

चाबहार पोर्ट, ईरान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पोर्ट माना जाता है। यह पोर्ट भारत, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्ग है। भारत सरकार ने 2016 में भी इस पोर्ट के विकास के लिए ईरान के साथ एक समझौता किया था।
नए समझौते को 2016 के समझौते का ही विस्तार माना जा रहा है। इस समझौते के तहत, भारत पोर्ट के टर्मिनल को ऑपरेट करेगा, कंटेनर कार्गो को संभालेगा और पोर्ट से जुड़ी रेल और सड़क संपर्क का विकास करेगा।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
तेज व्यापार: चाबहार पोर्ट भारत को यूरोप तक पहुँचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। इस रास्ते से माल की ढुलाई पारंपरिक मार्गों की तुलना में 20 दिन कम समय लगेगा और 30% कम खर्च आएगा।
मध्य एशिया तक पहुंच: यह पोर्ट भारत को कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करेगा। इस क्षेत्र में अपार प्राकृतिक संसाधन हैं और यह भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा मार्केट है।
पाकिस्तान और चीन को जवाब: चाबहार पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का एक मजबूत विकल्प है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है। इससे भारत व्यापार और रणनीतिक दोनों मोर्चों पर चीन और पाकिस्तान को टक्कर दे सकता है।
भारत और ईरान के बीच 20 साल का सफर
ईरान के चाबहार पोर्ट का विकास भारत और ईरान के बीच 20 साल पुराने सहयोग का प्रतीक है। 2003 में हुए एक समझौते के बाद, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे के दौरान इस प्रोजेक्ट को गति मिली। 2019 में, अफगानिस्तान से माल भारत आया, जिसने पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए एक नए व्यापार मार्ग की शुरुआत की।
हालांकि, यह सफर आसान नहीं रहा है। 2020 में, ईरान द्वारा भारत को एक प्रोजेक्ट से अलग करने की रिपोर्ट भी सामने आईं। अमेरिकी प्रतिबंधों और क्षेत्रीय राजनीति ने भी इस प्रोजेक्ट को प्रभावित किया है और अब 2024 में फिर लगभग 20 साल बाद यह समझौता हुआ है।
अमेरिकी प्रतिबंध
चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए भारत के लॉन्गटर्म समझौते पर इस दस्तावेज में चर्चा की गई है। अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि ईरान के साथ व्यापार करने वाले किसी भी देश पर प्रतिबंध लग सकता है। एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्टर (EAM) जयशंकर ने जवाब दिया कि इस प्रोजेक्ट से पूरे क्षेत्र को फायदा होगा और उन्होंने अमेरिका से व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने पहले चाबहार को प्रतिबंधों से छूट दे दी थी।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
चाबहार पोर्ट निवेशकों के लिए कई अवसर प्रदान करता है, जैसे:
लॉजिस्टिक्स और परिवहन: चाबहार एक क्षेत्रीय व्यापार केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है, जिससे लॉजिस्टिक्स और परिवहन कंपनियों के लिए अच्छा खासा कारोबार बढ़ने की संभावना है।
इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट: पोर्ट के आसपास इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के विकास में भी निवेश के कई अवसर हैं।
ट्रेडिंग: मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापार बढ़ने से भारतीय कंपनियां साथ ही व्यापारियों के लिए भी फायदे के मौके हैं।
भविष्य की बातें
चाबहार पोर्ट विकास की अपार संभावनाओं वाला एक क्षेत्र है। यह न केवल भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करेगा बल्कि क्षेत्रीय सहयोग को भी बढ़ावा देगा। हालांकि, अमेरिका-ईरान संबंधों में तनाव और अमेरिकी प्रतिबंधों की अनिश्चितता इस प्रोजेक्ट के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यह भारत को व्यापार में एक बड़ी भूमिका निभाने और मध्य एशिया और यूरोप के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में मदद करेगा। इस क्षेत्र में आने वाले समय में काफी विकास होने की उम्मीद है।
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*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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