भारतीय शेयर मार्केट के लिए 2025 अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की भारी और लगातार बिकवाली का गवाह रहा है। साल की शुरुआत से ही FIIs द्वारा निरंतर ऑउटफ्लो ने मार्केट पर एक दबाव का माहौल बना रखा था, जिससे निवेशकों में सतर्कता बनी हुई थी।
2025 के अधिकांश महीने नेट बिकवाली के साथ बंद हुए, हालांकि, अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में इस ट्रेंड में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है। महीनों तक नेट विक्रेता रहने के बाद, FIIs अचानक आक्रामक खरीदार के रूप में उभरे है।
आइए समझते है कि FIIs की वापसी का क्या कारण हैं और साथ ही यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि निवेशकों और मार्केट के लिए इसके क्या मायने हैं।
क्या है मामला?
अक्टूबर की शुरुआत भी इसी बिकवाली के ट्रेंड के साथ हुई, जब FIIs ने कैश मार्केट में 1 अक्टूबर को ₹1,605.20 करोड़ और 3 अक्टूबर को ₹1,583.40 करोड़ की नेट बिकवाली की। 6 अक्टूबर से शुरू हुए सप्ताह के पहले दिन भी ₹313.80 करोड़ की बिकवाली जारी रही। हालांकि, इसके बाद एक आश्चर्यजनक मोड़ आया। 7 अक्टूबर से FIIs ने अपनी रणनीति में 180-डिग्री का बदलाव किया और आक्रामक रूप से खरीदारी शुरू कर दी। उन्होंने 7 अक्टूबर से 10 अक्टूबर के बीच कुल ₹3,289.4 करोड़ की नेट खरीदारी की।

दूसरी ओर, भारतीय संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने मार्केट को स्थिर रखने में काफी अहम भूमिका निभाई है क्योंकि FIIs की लगातार बिकवाली के बावजूद DIIs ने निरंतर खरीदारी की है। अगर अहम सिर्फ अक्टूबर में ही देखें तो 13 अक्टूबर तक ₹14,130.5 करोड़ की खरीददारी की है जो भारतीय मार्केट में डोमेस्टिक फंड्स के भरोसे को दर्शाते है।
इस बदलाव के पीछे के प्रमुख कारण
न्यूज़18 के अनुसार, जिओजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट V.K विजयकुमार का कहना है कि, FPI रणनीति में यह बदलाव दो मुख्य फैक्टर्स से प्रेरित है। पहला, भारतीय इक्विटी और ग्लोबल मार्केट के बीच वैल्यूएशन गैप, जो पहले काफी व्यापक था, अब कम हो गया है। दूसरा, भारत के ग्रोथ और अर्निंग्स की संभावनाओं को ऊपर की ओर संशोधित किया गया है।
विजयकुमार ने बताया कि GST कटौती और कम ब्याज दर के माहौल से भारतीय कंपनियों की आर्निंग्स FY27 में बूस्ट होने की उम्मीद है, जिसे बाजार जल्द ही डिस्काउंट करना शुरू कर सकता है। यह बदलाव भारतीय इक्विटी के प्रति विदेशी निवेशक सेंटीमेंट में सुधार को दर्शाता है।
डोमेस्टिक निवेशकों की भूमिका
इस पूरी कहानी का एक और महत्वपूर्ण पहलू है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता – डोमेस्टिक संस्थागत निवेशकों (DIIs) की भूमिका। जबकि FIIs महीनों से लगातार बिकवाली कर रहे थे, DIIs ने मार्केट में एक स्थिर शक्ति के रूप में काम किया। उन्होंने आमतौर पर सहायक रुख बनाए रखा और विदेशी बिकवाली के बड़े हिस्से को अवशोषित कर लिया।

उदाहरण के लिए, जब FIIs ने 1 अक्टूबर और 3 अक्टूबर को क्रमशः ₹1,605.20 करोड़ और ₹1,583.40 करोड़ की बिकवाली की, तो DIIs ने क्रमशः ₹2,916.10 करोड़ और ₹489.80 करोड़ की खरीदारी करके मार्केट को सहारा दिया।
6 अक्टूबर को भी, जब FIIs ने ₹313.80 करोड़ की बिकवाली की, तो DIIs ने ₹5,036.40 करोड़ की भारी खरीदारी की। DIIs द्वारा इस निरंतर समर्थन ने मार्केट को उस बड़ी गिरावट से बचाया जो FIIs द्वारा 2025 में ₹1,53,867 करोड़ की भारी निकासी के कारण हो सकती थी।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
रिटेल निवेशकों के लिए, FIIs की वापसी एक सकारात्मक संकेत है। FII गतिविधि को अक्सर किसी देश की आर्थिक संभावनाओं में अंतरराष्ट्रीय विश्वास के बैरोमीटर के रूप में देखा जाता है। यदि यह खरीदारी का ट्रेंड जारी रहता है, तो यह मार्केट की मजबूती को सहारा मिल सकता है।

अगर हम इतिहास में देखें तो, 2025 के शुरुआती तीन महीने FIIs ने नेट बिकवाली की, उस दौरान निफ्टी लगभग समान स्तर पर बना रहा। जबकि अप्रैल से जून तक वह नेट खरीददार बने रहे, इस दौरान निफ्टी लगभग 23,500 से बढ़कर 25,500 के स्तर तक पहुंच गया यानि करीब 2,000 पॉइंट्स की रैली भारतीय मार्केट में FIIs के महत्त्व को दर्शाती है। हालांकि जुलाई से FIIs का बिकवाली का सिलसिला फिर शुरू हो गया है और तब से लेकर अब तक निफ्टी 25,500 के स्तर से नीचे ही संघर्ष कर रहा है।
भविष्य की बातें
मार्केट में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) द्वारा की जा रही खरीदारी का यह दौर आगे भी जारी रहेगा। इसका जवाब भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में छिपा है।
ग्लोबल स्तर पर मंदी की आशंकाओं के बावजूद, भारत सरकार अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध दिख रही है। मोतीलाल ओसवाल के अनुसार, हाल ही के व्यापार समझौते और अर्निंग्स के नतीजे मार्केट की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। उम्मीद है कि निफ्टी कंपनियों का लाभ FY27 तक ड्यूल डिजिट की मज़बूत रफ्तार से बढ़ता रहेगा। जिसमें स्थिर आर्थिक माहौल, नीति निरंतरता और कंपनियों की अर्निंग्स की मज़बूती इस सकारात्मक गति को बनाए रखने की प्रमुख ताकतें होंगी।
*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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