भारत और न्यूज़ीलैंड (NZ) के बीच प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को लेकर हाल के महीनों में चर्चा तेज हुई है। एक तरफ भारत अपने निर्यात को तेज़ी से बढ़ाने और ग्लोबल वैल्यू चेन में हिस्सेदारी मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर न्यूज़ीलैंड के साथ यह समझौता रणनीतिक और आर्थिक दोनों नजरिए से अहम माना जा रहा है।
ऐसे समय में जब भारत $1 ट्रिलियन निर्यात टारगेट से पीछे छूटता दिख रहा है, यह ट्रेड डील निवेशकों और शेयर मार्केट के लिए क्या संकेत देती है, यह सवाल स्वाभाविक है। आइए इस डील और इसके प्रभाव का विश्लेषण करें।
क्या है मामला?
सोमवार यानि दिसंबर 22, 2025 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यूज़ीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने भारत-न्यूज़ीलैंड फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) के सफल समापन की घोषणा की है। यह समझौता दोनों देशों के रिश्तों में एक अहम मोड़ माना जा रहा है। अब तक भारत और न्यूज़ीलैंड के संबंध मजबूत राजनीतिक सहयोग, साझा लोकतांत्रिक वैल्यूज पर आधारित रहे हैं, लेकिन आर्थिक साझेदारी उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई थी। यह FTA उस खालीपन को भरने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
भारत और न्यूज़ीलैंड ने मार्च 2025 में FTA पर बातचीत शुरू की थी और कई दौर की चर्चाओं के बाद दिसंबर 2025 में इसे अंतिम रूप दिया गया। यह भारत के सबसे तेजी से पूरे हुए FTA में से एक है। इस समझौते से भारतीय निर्यातकों को न्यूज़ीलैंड के मार्केट में बेहतर पहुंच और टैरिफ से जुड़ी सुविधाएं मिलेंगी। साथ ही, यह FTA भारत के लिए ओशिनिया और पैसिफिक आइलैंड देशों के मार्केट्स तक पहुंचने का एक अहम गेटवे भी बन सकता है।
इसके अलावा, इस समझौते से IT, इंजीनियरिंग, हेल्थकेयर, एजुकेशन और कंस्ट्रक्शन जैसे सेक्टर्स में भी भविष्य में सहयोग के नए रास्ते खुलने की उम्मीद है।
भारत-न्यूज़ीलैंड FTA के मुख्य हाइलाइट्स
भारत-न्यूज़ीलैंड फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) के लागू होने के बाद भारतीय निर्यात को न्यूज़ीलैंड में सभी टैरिफ लाइनों पर ज़ीरो-ड्यूटी एक्सेस मिलेगा, जिससे भारतीय प्रोडक्ट्स की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। यह समझौता किसानों, MSMEs, श्रमिकों, कारीगरों और महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ टेक्सटाइल, लेदर, फुटवियर और अन्य लेबर-इंटेंसिव सेक्टर्स में नए अवसर पैदा कर सकता है।
इस FTA से इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और केमिकल्स जैसे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। लक्ष्य अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना है। इसके तहत न्यूज़ीलैंड ने अगले 15 वर्षों में भारत में $20 बिलियन के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है, जिससे मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और जॉब क्रिएशन को समर्थन मिल सकता है।
कृषि क्षेत्र में भारतीय किसानों को फल, सब्ज़ियां, मसाले, कॉफी और प्रोसेस्ड फूड्स के लिए बेहतर मार्केट पहुंच मिलने की संभावना है, जबकि डेयरी और अन्य संवेदनशील सेक्टर्स को घरेलू हितों की रक्षा के लिए सुरक्षित रखा गया है। साथ ही, IT, फाइनेंस, एजुकेशन और टूरिज़्म जैसे सर्विस सेक्टर्स के लिए भी नए अवसर खुलते दिख रहे हैं।
भारत-न्यूज़ीलैंड के बीच क्या निर्यात और क्या आयात होता है?
भारत-न्यूज़ीलैंड के बीच व्यापार लगातार बढ़ा है। FY25 में भारत का निर्यात $711.1 मिलियन और आयात $587.1 मिलियन रहा। अभी FY26 (अप्रैल-अक्टूबर) में भारत का निर्यात $343.5 मिलियन, जबकि आयात $356.9 मिलियन दर्ज किया गया।
भारत के प्रमुख निर्यात्स (अप्रैल-अक्टूबर FY26) में ड्रग फॉर्मुलेशंस और बायोलॉजिकल्स ($34 मिलियन), पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स ($24.1 मिलियन), कॉटन फैब्रिक्स एंव मेड-अप्स ($19.9 मिलियन), मोटर व्हीकल्स ($16.9 मिलियन) और रेडीमेड गारमेंट्स ($16.3 मिलियन) शामिल हैं।
वहीं न्यूज़ीलैंड से भारत के प्रमुख आयात्स में फ्रेश फ्रूट्स ($57.4 मिलियन), आयरन एंड स्टील ($45.4 मिलियन), वुड व वुड प्रोडक्ट्स ($37.7 मिलियन), कोल/कोक ($30.3 मिलियन) और रॉ वूल ($28.9 मिलियन) शामिल हैं। डेयरी प्रोडक्ट्स का आयात $5.4 मिलियन रहा।
कुल मिलाकर, भारत का निर्यात वैल्यू-एडेड और मैन्युफैक्चरिंग आधारित है, जबकि न्यूज़ीलैंड से आयात मुख्य रूप से एग्रीकल्चर और नेचुरल रिसोर्स प्रोडक्ट्स तक सीमित है।
निवेशकों के लिए इसमें क्या है?
शेयर मार्केट के नजरिए से देखें तो भारत-NZ FTA किसी एक दिन में बड़ा ट्रिगर नहीं बनता, बल्कि यह सेक्टर-स्पेसिफिक असर डाल सकता है। जिन कंपनियों का फोकस निर्यात-ओरिएंटेड है, खासकर टेक्सटाइल, फार्मा, प्रोसेस्ड फूड और कुछ मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट्स में, उन्हें लॉन्ग टर्म में नए मार्केट एक्सेस का फायदा मिल सकता है।
हालांकि, निवेशकों के लिए यह समझना जरूरी है कि FTA साइन होना और उसका वास्तविक असर दिखना, दोनों के बीच समय का अंतर होता है। पहले भी कई FTAs के बावजूद निर्यात ग्रोथ उम्मीद के मुताबिक नहीं रही है। इसलिए मार्केट इस खबर को ज्यादा उत्साह से नहीं, बल्कि सतर्क आशावाद के साथ देख सकता है।
भविष्य की बातें
आने वाले एक साल में भारत की निर्यात रणनीति को बाहरी फैक्टर्स से ज्यादा डोमेस्टिक मजबूती पर केंद्रित करने की जरूरत होगी, क्योंकि ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स पर भारत का प्रभाव सीमित है। निर्यात ग्रोथ काफी हद तक प्रोडक्ट क्वालिटी सुधारने, वैल्यू चेन को मजबूत करने और उत्पादन लागत घटाने पर निर्भर करेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल जैसे सेक्टर्स सबसे बड़े अवसर के रूप में उभर सकते हैं, जहां अधिक वैल्यू एडिशन चुनौतीपूर्ण ग्लोबल माहौल में भी निर्यात को सहारा दे सकता है।
इसके साथ ही ट्रेड एग्रीमेंट्स का प्रभावी उपयोग और नीतियों का बेहतर क्रियान्वयन अहम होगा। थिंक टैंक के मुताबिक, टैरिफ्स, क्लाइमेट से जुड़े टैक्स और जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता आगे भी ग्लोबल व्यापार पर दबाव बनाए रखेंगी। ऐसे में निर्यात का टिके रहना और बढ़ना डोमेस्टिक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करेगा।
*यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य के लिए है। यह कोई निवेश सलाह नहीं है।
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