1.5 MT शुगर निर्यात को मंजूरी, शीरा पर से निर्यात ड्यूटी हटी

1.5 MT शुगर निर्यात को मंजूरी, शीरा पर से निर्यात ड्यूटी हटी
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भारतीय शुगर इंडस्ट्री, जो पिछले कुछ समय से सरप्लस स्टॉक और इथेनॉल प्राइस निर्धारण से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रहा है, के लिए एक महत्वपूर्ण राहत भरी खबर आई है। केंद्र सरकार ने हाल ही में 2025-26 सीज़न के लिए दो बड़े नीतिगत निर्णय लिए हैं। पहला, सरकार ने शुगर के निर्यात को मंज़ूरी दे दी है और दूसरा, शीरा (molasses) के निर्यात पर लगने वाली ड्यूटी को हटाने का फैसला किया गया है।

आइए समझते है कि इस बदलाव का भारतीय शुगर इंडस्ट्री पर क्या असर होगा और यह निवेशकों के लिए क्या मायने रखता है।

क्या है मामला?

केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 7 नवंबर को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखे पत्र में बताया कि सरकार ने 2025-26 शुगर सीजन के लिए 1.5 मिलियन टन शुगर निर्यात की मंजूरी दी है, जो अक्टूबर से शुरू हो चुका है। यह फैसला गन्ना किसानों के हितों की रक्षा और शुगर इंडस्ट्री में कैश फ्लो सुधारने के उद्देश्य से लिया गया है।

इसके साथ ही केंद्र ने शीरा (molasses) पर लगने वाले 50% निर्यात शुल्क को भी समाप्त कर दिया है। सरकार ने यह निर्णय उन नीतिगत कदमों की सूची के तहत साझा किया है, जिनका उद्देश्य देशभर के गन्ना उत्पादक किसानों को समर्थन देना और शुगर मिलों की लिक्विडिटी में सुधार लाना है।

शुगर उत्पादन में 16% की छलांग

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, 2025-26 में देश का कुल शुगर उत्पादन 16% बढ़कर 343.5 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह 296.5 लाख टन था। उत्पादन में यह उछाल बेहतर मॉनसून, बढ़ी हुई गन्ना उपलब्धता और प्रमुख उत्पादन राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण संभव हुआ है।

ISMA का कहना है कि इस वर्ष भारत के पास पर्याप्त शुगर बैलेंस है, जिससे देश करीब 20 लाख टन तक निर्यात करने की स्थिति में है। हालांकि, केंद्र सरकार ने 2025-26 सीजन के लिए 15 लाख टन निर्यात की अनुमति दी है और साथ ही शीरा (molasses) पर लगने वाला 50% निर्यात शुल्क भी हटा दिया है। जिससे यह कदम डोमेस्टिक मार्केट को संतुलित रखने और शुगर मिलों की लिक्विडिटी बढ़ाने के साथ-साथ किसानों के भुगतान चक्र में तेजी लाने में मदद करेगा।

क्या निर्यात की जरूरत है दोगुनी?

भारत, जो 2022-23 तक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शुगर निर्यातक रहा है, ने पिछले पांच वर्षों में औसतन 6.8 मिलियन टन शुगर का निर्यात किया। हालांकि, 2023-24 में सूखे के कारण सरकार ने निर्यात पर रोक लगाई और केवल 1 मिलियन टन की अनुमति दी। अब 2025-26 सीजन में एथेनॉल उत्पादन के लिए कम शुगर डायवर्जन होने से सरप्लस रिज़र्व बढ़ने की उम्मीद है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार को निर्यात को दोगुना यानी 2 मिलियन टन तक बढ़ाना चाहिए ताकि डोमेस्टिक मार्केट संतुलित रहे।

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (NFCSF) ने सुझाव दिया है कि मिलों को शुरुआती निर्यात की अनुमति दी जाए, जिससे वे सीजन की शुरुआत में ही रॉ शुगर उत्पादन कर सकें। भारत के पास केवल तीन महीने की टाइम विंडो होगी, क्योंकि इसके बाद ब्राज़ील की नई फसल से ग्लोबल प्राइस पर दबाव बढ़ सकता है। डोमेस्टिक प्राइस अभी ऊपर हैं, लेकिन दिसंबर तक एक्सपोर्ट पैरिटी बनने की उम्मीद है, जो निर्यात को व्यावहारिक बना देगी।

निवेशकों के लिए इसमें क्या है?

नवंबर 07, 2025 को सरकार के 1.5 मिलियन टन शुगर निर्यात की अनुमति और शीरा (molasses) पर 50% निर्यात शुल्क हटाने के फैसले के बाद शुगर सेक्टर में सकारात्मक रुझान देखने को मिला। शुरुआती ट्रेड में बलरामपुर शुगर मिल्स का शेयर 4.21% बढ़कर ₹450.75 पर, श्री रेणुका शुगर्स 3.52% चढ़कर ₹28.81 पर और त्रिवेणी इंजीनियरिंग 1% बढ़कर ₹364.85 पर ट्रेड कर रहा था। वहीं डालमिया भारत शुगर और बजाज हिंदुस्तान शुगर में भी करीब 3% की बढ़त दर्ज की गई।

इसके साथ ही, यह निर्णय शुगर मिलों की कैश फ्लो स्थिति और मार्जिन दोनों में सुधार हो सकता है। निर्यात बढ़ने से स्टॉक इन्वेंट्री घटेगी और एथेनॉल व अन्य संबंधित प्रोडक्ट्स की बिक्री में भी तेजी आएगी। कुल मिलाकर, यह कदम शुगर सेक्टर की समग्र प्रोफिटेबिलिटी को मजबूत करने की दिशा में सकारात्मक संकेत है।

भविष्य की बातें

ISMA के डायरेक्टर जनरल दीपक बलानी के अनुसार, 2025-26 सीजन में भारत से लगभग 2 मिलियन टन शुगर के निर्यात की संभावना है। इस सीजन की शुगर आउटपुट 30.95 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में 18.5% अधिक है।

ISMA के अनुसार, इस वर्ष लगभग 3.4 मिलियन टन शुगर एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट की जाएगी, जबकि पहले इसका अनुमान 4.5-5 मिलियन टन था। कुल एथेनॉल आवंटन में से केवल 28% हिस्सा शुगर-आधारित एथेनॉल को मिला है, जबकि बाकी फीड-आधारित प्लांट्स को दिया गया। एथेनॉल डायवर्जन में कमी से शुगर सरप्लस बढ़ेगा, जिससे भारत को निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलेगा।

कुल मिलाकर, यह नीति न केवल गन्ना किसानों बल्कि शुगर मिलों और निवेशकों के लिए भी लॉन्ग-टर्म राहत ला सकती है।

*आर्टिकल में शामिल कंपनियों के नाम केवल सूचना के उद्देश्य के लिए है। यह निवेश सलाह नहीं है।
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